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‘ऑपरेशन गंगा’ सिर्फ किताब नहीं बल्कि हज़ारों-लाखों लोगों के मन की वेदना और युद्ध के हालातों को बयां करती जीवंत घटनाओं का संग्रह है।

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यूक्रेन और रूस के मध्य हुए युद्ध का मंज़र भला कौन भूल सकता है। एक झटके में तबाह होते शहर और हर पल जान जाने का डर। आख़िर इन्हें वही महसूस कर सकता है जिसने वहां हर रोज़-हर क्षण अपनी और अपने परिवार की सलामती के लिए संघर्ष किया हो। युद्ध के दौरान होने वाली न जाने कितनी दिक्कतों को एक पुस्तक का रूप दिया है मध्यप्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईएएस अफसर तरुण पिथोड़े ने। तरुण जी की किताब ‘ऑपरेशन गंगा’ इन दिनों हर जगह चर्चा का केन्द्र बनी हुई है। इस किताब में तरूण पिथोड़े ने रूस और यूक्रेन के मध्य हुए युद्ध में फंसे भारतीय बच्चों की सफल वापसी, संघर्ष से लेकर परेशानियों को बेहद जीवंत अंदाज में बताने का कोशिश की है।

यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की शुरुआत के दौरान यूक्रेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत हजारों भारतीय विद्यार्थियों के सुरक्षित भारत लौटने पर विकट संकट था। युद्ध क्षेत्र के बीच से बचाव का कार्य बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाला था। विद्यार्थियों के अलग-अलग शहरों में होने, उनके निकल पाने की स्थितियों की सटीक जानकारी न होना तथा युद्ध की वजह से विमान सेवाओं के निलंबन जैसी न जाने कितनी हीं कठिनाइयों के बीच भारत सरकार ने बच्चों को सुरक्षित वापस लाने के अपने अभियान ‘ऑपरेशन गंगा’ को शुरू किया।

यह सारा अभियान कैसे योजनाबद्ध किया गया, कैसे इसके विभिन्न चरण आरंभ हुए और इसके क्रियान्वयन में आने वाली अनेकों मुश्किलों को तरुण पिथोड़े जी ने विस्तार से इस किताब में बयां किया है। ‘ऑपरेशन गंगा’ का प्रकाशन ब्लूम्सवरी द्वारा किया है। यूक्रेन के मानचित्र को लेकर अगर किताब को पढ़ा और समझा जाए तो न सिर्फ भौगोलिक स्थितियों के हिसाब से ऑपरेशन गंगा की बारीकियों को जीवंत होता देखा जा सकेगा, वरन इस समय भी जारी इस युद्ध के बहुत सारी सामरिक और राजनीतिक बारीकियां भी बेहद सरल ढंग से समझी जा सकती हैं।

पूर्वी यूक्रेन में स्थित शहर कीव और खारकीव, जो भीषण युद्ध की चपेट में थे, से के अलावा कम हमले झेल रहे पश्चिमी इलाकों में रह रहे विद्यार्थियों को रोमानिया, हंगरी, स्लोवाक और पोलेंड की सीमा तक पहुंचना था, जो कि बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाला था। लेखक ने युद्ध मे फंसे हजारों विद्यार्थियों, दूतावास के अधिकारियों, इन चारों देशों में भेजे गए भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रियों और विभिन्न भारतीय कंपनियों से मदद को आए लोगों से की गई बातचीत को एक डायरी में दर्ज किया और फिर इसे किताब ‘ऑपरेशन गंगा’ का रूप दिया।

हजारों लोग, जिनमें केवल विद्यार्थी ही नहीं बल्कि यूक्रेन में कई वर्षों से निवासरत अन्य भारतीय भी शामिल थे, उनकी सुरक्षित वापसी को विस्तार से जानना सच में भयभीत कर देने वाला मंजर है। युद्ध के हालात में जान जाने का ख़तरा होना, घर वापसी की उत्कंठा और पराये देश में सुरक्षा का डर कई गुना बढ़ जाता है लेकिन जिस तरह भारत ने अपने युवाओं को निकाला, वो विश्वभर में सराहा गया। मदद के लिए आगे आये हजारों हाथों का विवरण ‘ऑपरेशन गंगा’ में मिलता है। इसे एक बार जरूर पढ़ा जाना चाहिए, ताकि उन हालातों से रूबरू हुए लोगों के मन की वेदना जान सकें।