Home Tags Ramzan

Tag: ramzan

चीन में रोज़ा पे लगे प्रतिबंध का भारत में दिखा असर, ‘मेड इन चाईना’ का बहिस्कार कर मुस्लिम समुदाय ने दिखाई एकता

0

NewBuzzIndia:

चीन में लगे रोज़े और रमज़ान के प्रतिबंध का असर भारत में भी साफ़ तौर पर देखा जा रहा है। इस मुद्दे पर देश के मुसलमानों ने दिखाई एकता और विरोध में सभी ‘मेड इन चाईना’ उत्पादों का बहिष्कार कर दिया है। बाज़ार में खास कर के टोपियों का बहिष्कार किया गया है। दुकानदारों ने थोक मंडी से बेचने के लिए टोपियां नहीं खरीदी और ना ही कोई और चाइनीज़ सामान उठाया। वही पाकिस्तान, इंडोनेशिया और बाकि इस्लामी देशों में मस्तकी टोपियों की ज़बरदस्त बिक्री हुई।

ये भी पढ़ें…100 करोड़ लेने और ब्लैकमेल के मामले में ZEE NEWS के संपादक को सुप्रीम कोर्ट से पड़ी फटकार

इस बार चीन की सरकार ने अपने देश में रोजे पर पाबंदी लगा दी है। इसका विरोध भारत में कई जगह हुआ। बरेली के कई संगठनों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेज कर इस मामले में चीन की सरकार से बात करने की मांग की थी। रोजे पर रोक के विरोध में बरेली के दुकानदारों ने चाइना का माल नहीं उठाया।

ये भी पढ़ें… मोदी सरकार के खिलाफ खुल के सामने आए स्वामी, प्रधानमंत्री मोदी के “अच्छे दिन” और बेहतर जीडीपी पर किया हमला

टोपी के अलावा दूसरे इस्लामी सामान जैसे कार हैंगिंग, तसबीह, तुगरे, घड़ी आदि बिलकुल नहीं खरीदे गए। लोगों ने चाइनीज सामान से पूरी तरह बहिष्कार किया है।

यर भी पढ़ें… बकरीद पर इरफ़ान खान ने दिया विवादित बयान, कहा ‘बकरे की कुर्बानी देना है गलत, देना है तो अपने अज़ीज़ की दें कुर्बानी।’

चीन में रोज़ा रखने पर लगा प्रतिबंध, जानिए पूरी खबर…

0

NewBuzzIndia:

चीन में जारी हुए एक फरमान ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी है। चीन की निरंकुश सरकार ने कर्मचारियों, नाबालिगों और छात्रों को रोज़ा ना रखने का आदेश दिया है।

ग़ौरतलब है कि रमज़ान सोमवार से शुरु हो चुके हैं। चीन की सत्तारुढ़ कम्‍युनिस्‍ट पार्टी नास्तिक है और शिनजियांग शहर में बरसों से सरकारी कर्मचारियों, छात्रों और नाबालिगों के रोज़ा रखने पर पाबंदी है। शिनजियांग में उइगर मुसलमान की एक करोड़ आबादी है जो अल्पसंख्यक हैं। सरकार ने होटलों को भी खुला रखने के आदेश दिए हैं।

आखिर क्‍यों : क्‍योंकि सत्‍ताधारी कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और कम्युनिस्ट विचार में ये माना जाता है कि ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं होता। इस तरह के धार्मिक प्रतिबंधों को पहले भी चीन के कई हिस्सों में लगाया जा चूका है।

आइए जाने रमज़ान के आध्यात्मिक, शारारिक और मानसिक फायदे

0

NewBuzzIndia:

किसी भी धर्म का मुख्य उद्देश्य मनुष्य की भलाई और बेहतरी होती है। जीवन को एक अनुशासन और लयबद्ध तरीके से जीना, जिससे व्यक्ति को आत्मिक एवं शारारिक शांति हासिल करना ही प्राथमिकता होती है। यही कारण है कि सभी पंथों में इस सुकून, चैन और शांति को प्राप्त करने के राह को अलग अलग तरह से समझाया गया है।
आइए समझते हैं कि इस्लाम में रमज़ान का महीना किस तरह से आत्मा, मन और शारीर के लिए महत्वपूर्ण है।

रमजान इस्लाम का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने में मुसलमानों पर रोजा रखना फर्ज है जिसका अर्थ है कि सुबह से शाम तक हर खाने पीने के साथ हर अवैध काम से परहेज करना और शारीरिक और मांसिक रूप से नियंत्रण रखना है जो समाज और मानवता के लिए एक उपहार से कम नहीं है।

इस पवित्र महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।

रोजा का अर्थ

रोजा का सही अर्थ सुबह से संध्या तक केवल खाने पीने को छोड़ देना नहीं है बलकि रोजा जिसे अरबी में सौम कहा जाता है का अर्थ रुकना है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करना है। अर्थात पेट का रोजा जिसका अर्थ है कि रोजे के समय कुछ न खाये पिये और उसके पश्चात रिश्वत जैसे अवैध पैसे से खरीदा गया भोजन न करे, आंखों का रोज अर्थात किसी बहू बेटी को गंदी और हवस भरी नजर से न देखे, जुबान का रोजा अर्थात झूठ न बोले, किसी की बुराई न करे, किसी पर गलत आरोप न लगाए, किसी को बुरा भला न कहे, किसी को अपशब्द न कहे आदि, कान का रोजा अर्थात किसी की बुराई न सुने, हाथ पैर का रोजा अर्थात किसी का अधिकार न छीने और न ही पर अत्याचार करे। बलकि दूसरों का हाथ थामे और पीड़ितों की सहायता के लिए आगे बढ़े, तथा दिल और दिमाग में ईष्वर की श्रद्धा हो एंव अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाए ताकि गलत रास्तों पर न जा सके।

इसी कारण इस महीने में इबादत का 70 गुना सवाब रखा गया है। इस प्रकार रोजा मानव जीवन की समृद्धि का एक मुख्य स्रोत बन जाएगा। इसी भावना को प्रदर्शित करने के लिए इस महीने में अफतार देने पर बल दिया गया है ताकि इस समय किसी के मन में अमीर गरीब, शक्तिशाली निर्बल, ऊंच नीच की भावना मिट जाए और सभी एक ही स्थान पर बैठ कर ईष्वर की इस नीति को समझ कर उच्च समाज की स्थापना कर सकें।

इस एक महीने में यदि सही रूप से रोजा रखा तो बाकी महीनों में भी वह इसी प्रकार का व्यवहार करेगा क्योंकि उसे इसकी आदत हो चुकी होगी क्योकि रोजा मनुष्य के संयम की परीक्षा है।

रोजा का आध्यात्मिक लाभ

रोजा न केवल मानव जीवन के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभदायक है बलकि इस प्रकार का रोजा समाज की शांति और समृद्धि का कारण है।

रोजा द्वारा भावनाओं और हवस पर काबू पाया जा सकता है।

रोजा, अन्य लोगों के अधिकारों से हनन से बचाता है और दुसरों की सहायता के लिए प्रोत्साहित करता है।

रोजा द्वारा मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जा सकता है जिससे समाज शांति की ओर अग्रसर होगा।

रोजा का शारीरिक लाभ

पिछले युगों में रोजा को खास महत्व प्राप्त था और पाइथागोरस, सुकरात और इब्ने सीना जैसे हकीम रोजा द्वारा बहुत से रोगों का इलाज किया करते थे।

रूस के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉक्टर एलेक्सी सोफ्रीन का कहना है कि साल भर निरंतर खाना उपयोग करने से मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसे पदार्थ और ऊर्जा उत्पन्न हो जाते है जो बाद में हानिकारक एंव विषैला हो जाता है लेकिन रोजा रखने से शरीर उस आंत्रिक ऊर्जा का सेवन करता है जिसके कारण शरीर स्वस्थ हो जाता है और रोजा एक विशेष बायोलोजिक इलाज है।

रोजा डिप्रेशन का बेहतरीन इलाज है क्योंकि यह मनुष्य में आशा और आत्मविश्वास जगाता है।

रोजा पाचन तंत्र को आराम देता है जिससे अच्छा फिज़ियोलोजिक प्रभाव डालता है।

इसके अतिरिक्त भी विश्व के विख्यात विद्वानों ने रोजे पर शोध करके इसके सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक लाभों का व्याख्यान किया है।

रमजान मानता के लिए उपहार

यूंतो इस्लाम का अर्थ ही शांति है लेकिन इस्लामी कैलेंडर का रमजान महीना न केवल मुसलमानों के लिए बलकि कुल मानवता के लिए शांति का संदेश और समाज की समृद्धि को लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और रोजा मानव के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अत्यंत लाभदायक है और कुल मानव जाति के लिए एक उपहार से कम नहीं है क्योंकि इस महीने में लोगों को भावनाओं और हवस पर नियंत्रण करना और दूसरों की सहायता करना, दूसरों के अधिकारों का करने से परहेज करना, शारीरिक, मांसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने के गुर सिखाकर परीक्षा ली जाती है।

इसी कारण यदि धर्मों और सभ्यताओं का इतिहास खंगाला जाए तो बहुत से धर्मों में अलग अलग तरीके से रोजा का कांसेप्ट आपको अवश्य नजर आएगा जैसे युनान और रोम की सभ्यता एंव हिंदू, ईसाई और यहूदी धर्मों में विभिन्न प्रकार से रोजा और उपवास का विश्वास पाया जाता रहा है।मजान इस्लाम का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने में मुसलमानों पर रोजा रखना फर्ज है जिसका अर्थ है कि सुबह से शाम तक हर खाने पीने के साथ हर अवैध काम से परहेज करना और शारीरिक और मांसिक रूप से नियंत्रण रखना है जो समाज और मानवता के लिए एक उपहार से कम नहीं है।

इस पवित्र महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।

रोजा का अर्थ

रोजा का सही अर्थ सुबह से संध्या तक केवल खाने पीने को छोड़ देना नहीं है बलकि रोजा जिसे अरबी में सौम कहा जाता है का अर्थ रुकना है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करना है। अर्थात पेट का रोजा जिसका अर्थ है कि रोजे के समय कुछ न खाये पिये और उसके पश्चात रिश्वत जैसे अवैध पैसे से खरीदा गया भोजन न करे, आंखों का रोज अर्थात किसी बहू बेटी को गंदी और हवस भरी नजर से न देखे, जुबान का रोजा अर्थात झूठ न बोले, किसी की बुराई न करे, किसी पर गलत आरोप न लगाए, किसी को बुरा भला न कहे, किसी को अपशब्द न कहे आदि, कान का रोजा अर्थात किसी की बुराई न सुने, हाथ पैर का रोजा अर्थात किसी का अधिकार न छीने और न ही पर अत्याचार करे। बलकि दूसरों का हाथ थामे और पीड़ितों की सहायता के लिए आगे बढ़े, तथा दिल और दिमाग में ईष्वर की श्रद्धा हो एंव अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाए ताकि गलत रास्तों पर न जा सके।

इसी कारण इस महीने में इबादत का 70 गुना सवाब रखा गया है। इस प्रकार रोजा मानव जीवन की समृद्धि का एक मुख्य स्रोत बन जाएगा। इसी भावना को प्रदर्शित करने के लिए इस महीने में अफतार देने पर बल दिया गया है ताकि इस समय किसी के मन में अमीर गरीब, शक्तिशाली निर्बल, ऊंच नीच की भावना मिट जाए और सभी एक ही स्थान पर बैठ कर ईष्वर की इस नीति को समझ कर उच्च समाज की स्थापना कर सकें।

इस एक महीने में यदि सही रूप से रोजा रखा तो बाकी महीनों में भी वह इसी प्रकार का व्यवहार करेगा क्योंकि उसे इसकी आदत हो चुकी होगी क्योकि रोजा मनुष्य के संयम की परीक्षा है।

रोजा का आध्यात्मिक लाभ

रोजा न केवल मानव जीवन के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभदायक है बलकि इस प्रकार का रोजा समाज की शांति और समृद्धि का कारण है।

रोजा द्वारा भावनाओं और हवस पर काबू पाया जा सकता है।

रोजा, अन्य लोगों के अधिकारों से हनन से बचाता है और दुसरों की सहायता के लिए प्रोत्साहित करता है।

रोजा द्वारा मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जा सकता है जिससे समाज शांति की ओर अग्रसर होगा।

रोजा का शारीरिक लाभ

पिछले युगों में रोजा को खास महत्व प्राप्त था और पाइथागोरस, सुकरात और इब्ने सीना जैसे हकीम रोजा द्वारा बहुत से रोगों का इलाज किया करते थे।

रूस के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉक्टर एलेक्सी सोफ्रीन का कहना है कि साल भर निरंतर खाना उपयोग करने से मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसे पदार्थ और ऊर्जा उत्पन्न हो जाते है जो बाद में हानिकारक एंव विषैला हो जाता है लेकिन रोजा रखने से शरीर उस आंत्रिक ऊर्जा का सेवन करता है जिसके कारण शरीर स्वस्थ हो जाता है और रोजा एक विशेष बायोलोजिक इलाज है।

रोजा डिप्रेशन का बेहतरीन इलाज है क्योंकि यह मनुष्य में आशा और आत्मविश्वास जगाता है।

रोजा पाचन तंत्र को आराम देता है जिससे अच्छा फिज़ियोलोजिक प्रभाव डालता है।

इसके अतिरिक्त भी विश्व के विख्यात विद्वानों ने रोजे पर शोध करके इसके सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक लाभों का व्याख्यान किया है।

रमजान मानता के लिए उपहार

यूंतो इस्लाम का अर्थ ही शांति है लेकिन इस्लामी कैलेंडर का रमजान महीना न केवल मुसलमानों के लिए बलकि कुल मानवता के लिए शांति का संदेश और समाज की समृद्धि को लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और रोजा मानव के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अत्यंत लाभदायक है और कुल मानव जाति के लिए एक उपहार से कम नहीं है क्योंकि इस महीने में लोगों को भावनाओं और हवस पर नियंत्रण करना और दूसरों की सहायता करना, दूसरों के अधिकारों का करने से परहेज करना, शारीरिक, मांसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने के गुर सिखाकर परीक्षा ली जाती है।

इसी कारण यदि धर्मों और सभ्यताओं का इतिहास खंगाला जाए तो बहुत से धर्मों में अलग अलग तरीके से रोजा का कांसेप्ट आपको अवश्य नजर आएगा जैसे युनान और रोम की सभ्यता एंव हिंदू, ईसाई और यहूदी धर्मों में विभिन्न प्रकार से रोजा और उपवास का विश्वास पाया जाता रहा है।