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बिहार के इंटरमीडिएट एग्जाम के रिजल्ट के बाद एक टीवी इंटरव्यू में आर्ट्स और विज्ञान विषय के टॉपरों का का पर्दाफाश हुआ है, इस मामले में हो रहे रोज़ नए खुलासों से बिहार शिक्षा बोर्ड की नींद हराम हो गई है। इस काण्ड में अभी तक पांच छात्रों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। वही बिहार बोर्ड के अध्यक्ष लालकेश्वर सिंह और बिशुन राय कॉलेज के संचालक बच्चा राय अभी तक फरार हैं।
पुलिस लगातार अपने तफ़तीस में लगी हुई है। घोटाले और गिरफ्तारियों की कड़ियों को जोड़ कर मामले की तह तक पहुँचने की कोशिश की जा रही है। इस पुरे घटना की छानबीन करने के लिए एसआईटी का गठन किया गया है, जिसने हाजीपुर स्थित बिसुन राय कॉलेज में गुरुवार शाम छापामारी भी की।
वहीं टॉपरों को लेकर देश में अपनी तरह के इस पहले घोटाले के बीच बड़ा सवाल ये है कि आखिर इन छात्रों ने टॉप किया कैसे? क्या इसके लिए कुछ छात्रों को विशेष तौर पर नकल करवाई गई या फिर बोर्ड के सेंटर लगवाने में हेराफेरी की गई या इन सबसे इतर कोई अन्य तरीका अपनाया गया।
अभी तक की जांच में टॉप करवाने का जो सच सामने आया है वो थोड़ा चौंकाने वाला है। तो चलिए आपको तफशील से बताते हैं वो सच जिससे जुड़ा है टॉपर बनाने का वो खेल जिसने बिहार की पूरी माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था पर कालिख पोत दी है।
आइए जाने कैसे होती थी कॉपियों की हेरा फेरी
परीक्षाओं में पास कराने या टॉप करने की हेराफेरी के जितने भी मामले सामने आते हैं उनमें ज्यादातर मामले नकल या सामूहिक नकल कराने के ही होते हैं। लेकिन बिहार में टॉप कराने के मामले में बिल्कुल अलग तरीका अपनाया गया जिससे कहीं पर भी शक की गुंजाइश न रहे और न ही चोरी पकड़ में आ सके।
असल में फर्जीवाड़े का यह सारा खेल बच्चा राय और बोर्ड अधिकारियों की शह पर खेला जाता था। बच्चा राय अपने कालेज विशुन राय कालेज का सेंटर अपनी मर्जी से लगवाता था। इसके बाद कॉपियां कहां चेक होनी हैं ये भी वह खुद ही तय करता था। परीक्षा होने के बाद जब सारी कॉपियां जांच होने के लिए केंद्र पर पहुंच जाती थी तब ये सारा खेल शुरू होता था।
सूत्रों के अनुसार जिन छात्रों को टॉप करवाना या नंबर अच्छे रखवाने होते थे उनकी कॉपियां बंडल में से ढूंढकर निकाल ली जाती थी। फिर उन कॉपियों के ऊपर के पिन खोलकर अंदर के पेज निकाल लिए जाते थे, फ्रंट पेज पहले वाला ही रखा जाता था।
इसी बीच एक व्यक्ति या छात्र इत्मीनान से सही सवालों के जवाब खाली उत्तर पुस्तिका में लिखते थे जिसके ऊपर का पेज उतारकर वापस पुरानी वाली कॉपी के फ्रंट पेज के अंदर डाल दिया जाता था। यह सारा काम इतने शातिर तरीके से किया जाता था कि कॉपी से छेड़छाड़ का अंदाजा लगाना मुश्किल होता था।