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उड़ता पंजाब: ‘मुझे मोदी का चमचा होने पर गर्व है।’- पहलाज निहलानी

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NewBuzzIndia:

‘कोई माफ़ी नहीं, कोई इस्तीफ़ा नहीं।’ ये कहना है सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी का। पहलाज निहलानी आज देश भर में चर्चा के केंद्र इस वजह से बन गए, क्योंकि उनका ये आरोप है कि अनुराग कश्यप की निर्देशित फ़िल्म ‘ उड़ता पंजाब’ में आम आदमी पार्टी का पैसा लगा है। हालाँकि फ़िल्म निर्देशक अनुराग कश्यप फ़िल्म पर हो रही राजनीति से बहुत दुखी नज़र आए, कई बार उनका गुस्सा सार्वजनिक तौर पर भी सामने आया। उन्होंने इसकी सफाई भी दी, कि उनकी फ़िल्म और राजनीति से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। पहलाज निहलानी के इस आरोप का बॉलीवुड जगत के साथ साथ सोशल मीडिया पर भी जम के विरोध हुआ। पर इन विरोधों का असर बोर्ड प्रमुख पर नहीं दिखा। वह अभी भी अपने आरोपों को ले के अड़े हैं, उनका कहना है कि,  ‘ मैंने जो सुना, वही कहा।’

बॉलीवुड के कई लोगों ने ऐलान किया की वे इस लड़ाई में अनुराग कश्यप के साथ खड़े है। इन सभी लोगों का दावा है कि पहलाज निहलानी ने इस फ़िल्म से उन सीनों को हटाना चाहते हैं, जो पंजाब और चुनाव की तरफ इशारा कर रही है। जिसके बाद फ़िल्म में कुल 89 कट लगाए गए हैं। निहलानी के इस कदम का फ़िल्म जगत में भारी विरोध हो रहा है। कई लोगों का मानना है कि इस तरह की हरकतें ना सिर्फ फ़िल्म का अपमान कर रही हैं, बल्कि यह ‘ फ़िल्म जगत’ का भी अपमान है। अपने गुस्से को ज़ाहिर करते हुए लोगों ने ना सिर्फ निहलानी से माफ़ी मांगने की मांग की है, बल्कि फ़िल्म रोकने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की भी मांग की है।

इधर निहलानी ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि, ‘केंद्र कभी सेंसर बोर्ड के कामों में दखल नहीं देती। इस तरह को कोई राजनैतिक दबाव नहीं था।’
निहलानी ने आगे कहा, ‘जैसा की अनुराग कश्यप ने कहा की मैं मोदी का चमचा हूँ। हाँ, मुझे गर्व है की मैं मोदी का चमचा हूँ। ये किसी इटली के प्रधानमंत्री का चमचा होने से अच्छा है।’
पहलाज निहलानी ने इन बातों का भी खंडन किया की उन्होंने फ़िल्म निर्माताओं को फ़िल्म के नाम से पंजाब शब्द को हटाने की बात कही है। निहलानी ने इस बात को भी बताने से इंकार किया कि फ़िल्म के किन दृश्यों को हटाया गया है। पहलाज अपने फैसले पर टिके हुए हैं, उनका कहना है कि, ‘जब कोई पूरी फ़िल्म देखेगा तब उसे समझ आएगा की क्यों पंजाब शब्द हटाना चाहिए।’

उड़ता पंजाब: ‘NDA से ज्यादा मैंने UPA की सरकार में लड़ाइयां लड़ी।’- अनुराग कश्यप

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NewBuzzIndia: उड़ता पंजाब पर लगातार हो रही राजनीति पर अनुराग कश्यप का गुस्सा खुल कर सामने आया।

फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के निर्माताओं में से एक फिल्मकार अनुराग कश्यप ने यह कहकर सरकार की आलोचना की है कि सेंसरशिप के मुद्दे पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के साथ उनकी जंग को राजनीतिक रंग देना गलत है। अनुराग ने ट्वीट किया कि आपको बता दूं कि सेंसरशिप के मुद्दे पर मैंने एनडीए से कहीं अधिक यूपीए में लड़ाई लड़ी है। लेकिन क्या आपको पता है कि उस वक्त वहां कोई निहलानी नहीं थे।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ के फिल्मकार ने उन्हें कांग्रेस और आप के एजेंट के तौर पर प्रचारित करने वाले कथित ‘‘पेड ट्रोल्स’’ की आलोचना की। पैसे लेकर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर गाली गलौज, अपशब्दों से भरे कमेंट्स की बौछार करने वालों को पेड ट्रोल्स कहते हैं।

उन्होंने ट्वीट किया कि और.. यह बहुत निराशाजनक है कि पार्टी समर्थित और पेड ट्रोल्स मुझे कांग्रेस या आप का एजेंट बनाने पर तुले हैं। कश्यप ने बताया कि विवाद से पहले उन्होंने सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के साथ करीब से काम किया था। उन्होंने कहा कि सेंसरशिप के मुद्दे पर मैं इस मंत्रालय और राज्यमंत्री श्रीमान राठौड़ के साथ करीब से काम कर चुका हूं।

Big question : Is sex comedy censor comfortable..?

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In these last months, Censor board of the film industry was widely criticised for its high handedness and moral policing with regards to the chopping of kissing scenes in the film Spectre. It is therefore highly surprising that Censor Board has passed films like Mastizaade and Kyaa Kool Hain Hum 3 which is filled with far more objectionable content that Spectre could even imagine.

The teaser of the two films shows juvenile comedy full of innuendos and penis jokes as well as titillating skin show. Even though it took a long time for Mastizaade to get CBFC’s nod along with an A certificate, it is surprising how the morality policing board gave a pass to films with such adult content.

The question here is not of morals, the choice of watching adult films must remain with the individual, the point is that what standards and guidelines are the Censor Board following in its judgements or whether it is just arbitrarily decided?

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