2023 के चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं। कांग्रेस के पूर्व मंत्री अरूण यादव ने यूपीए सरकार में हुई जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग की है। इसके अलावा कांग्रेस ने आबादी के हिसाब से आरक्षण देने की भी मांग की है। कांग्रेस की इस मांग के बाद बीजेपी ने भी इस पर पलटवार किया है।
बीजेपी के पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य ने बयान दिया है कि कांग्रेस के नेताओं ने कभी हिंदुस्तान के दलित गरीब को आगे नहीं आने दिया। यूपीए की 57 साल केंद्र में सरकार रही वहीं मध्य प्रदेश में भी कई वर्षों तक सरकार रही, तब किसने मना किया था कि जातिगत जनगणना मत कीजिए। आर्य ने आगे कहा कि जब सत्ता उनके खुद के हाथ में थी उस वक़्त क्यों जातिगत जनगणना नहीं हुई?
लाल सिंह आर्य ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस का काम सिर्फ झूठे वादे करना, भ्रम फैलाना और वोट के लिए राजनीति करना है। हमेशा यही सब कांग्रेस के राज में होता आया है।
पूर्व मंत्री ने तंज कसते हुए कहा कि अगर कांग्रेस कुछ काम कर लेती तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आयुष्मान कार्ड ना बनाना पड़ता, ना ही शौचालय बनवाना पड़ता और ना ही बैंक में खाते खुलवाने पड़ते। दलित और पिछड़ा वर्ग कांग्रेस के लिए सिर्फ वोट बैंक हैं।
अरुण यादव ने इस पर कहा कि मनमोहन सरकार के समय जनगणना का काम किया गया था, सिर्फ रिपोर्ट जारी करना ही बाकी रह गया था। पर पिछले 10 साल में भाजपा सरकार ने कुछ नहीं किया।
वहीं जातिगत जनगणना की मांग को लेकर वरिष्ठ पत्रकार विजयदत्त श्रीधर का बयान भी सामने आया है। श्रीधर का कहना है कि ये पूरी तरह वोट की राजनीति है। जिन भी वर्गों के लिए ये मांग की जा रही है उन वर्गों का हक़ इसमें कैसे संरक्षित होगा। उन्होंने आगे कहा कि अंबेडकर हमेशा चाहते थे कि पिछड़े समाज के या अलग-अलग समुदायों से आने वाले लोग मुख्यधारा में किसी के साथ भी मुकाबला कर सकें। आज ज़रूरत सिर्फ इस बात की है कि ऐसे लोगों की योग्यता को बढ़ाया जाए। श्रीधर के अनुसार जातिगत जनगणना बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है। इस तरह की मांगों से समाज में बिखराव बढ़ता है।
जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय जनगणना कहते हैं। किस वर्ग को कितनी हिस्सेदारी मिली, कौन वंचित रहा, जातीय जनगणना से इन सभी बातों का पता लगता है। जातियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का भी पता चलता है।