भोपाल। मध्यप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासत गरमा गई है। यहां दलित राजनीति केंद्र में है। सभी सियासी दल प्रदेश में 17 फीसदी वोट बैंक की हिस्सेदारी रखने वाले दलितों को साधने में जुटे हैं। अंबेडकर जंयती के बहाने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही खुद को दलित हितैषी साबित करने में जुटी दिखाई दीं।
संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंडेकर की 132वीं जयंती पर मध्यप्रेश में सियासी दलों के आयोजनों की होड़ लगी रही। बाबा साहेब की जन्मस्थली इंदौर के महू में सियासी नेताओं का जमावड़ा लगा रहा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ, सपा मुखिया अखिलेश यादव और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने महू पहुंचकर बाबा साहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया।
बाबा साहब की जयंती के दिन प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने महू में कई बड़े ऐलान करने के साथ बाबा साहेब से जुड़े पंचतीर्थ, जन्मभूमि महू, शिक्षाभूमि लंदन, दीक्षाभूमि नागपुर, महापरिनिर्वाण भूमि दिल्ली और चैत्यभूमि मुंबई को मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन में जोड़ने की घोषणा की। हालांकि सीएम की घोषणा के बाद आए सरकार के आदेश पर कांग्रेस ने कई सवाल खड़े किए।
मध्यप्रदेश के राजनीतिक तेवर की बात करें तो प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस खुद को भले ही दलित हितैषी बताते हों लेकिन अब तक दलित मुख्यमंत्री नहीं बनने पर सवाल उठते रहे हैं। प्रदेश में दलित नेताओं की एक लंबी कतार है लेकिन इनमें से किसी भी चेहरे को मुख्यमंत्री बनने की रेस में नहीं माना जाता है।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा में कई ऐसे दलित चेहरे हैं जो प्रदेश के साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी अपना वर्चस्व रखते हैं। इनमें टीकमगढ़ से भाजपा सांसद वीरेंद्र खटीक एक ऐसे दलित चेहरे हैं जो मोदी सरकार में मंत्री हैं। ग्वालियर-चंबल से आने वाले लाल सिंह आर्य भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। मालवा से आने वाले सत्यनारायण जटिया भाजपा संसदीय बोर्ड में शामिल हैं तो वहीं सुमित्रा बाल्मिकी को भाजपा ने हाल में ही राज्यसभा भेजा है।
वहीं कांग्रेस में भी दलित नेताओं की एक लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त है। कांग्रेस के दलित चेहरों में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा, विजय लक्ष्मी साधौ और एनपी प्रजापति जैसे दिग्गज नाम शामिल थे। इसके साथ ही फूल सिंह बरैया और देवाशीष जाररिया भी शामिल हैं।
2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 35 आरक्षित सीटों में से 18 पर कांग्रेस के दलित चेहरों ने जीत हासिल की थी। खास बात यह है कि दलित बाहुल्य वाले ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस ने आरक्षित 7 सीटों में से 6 पर अपनी जीत हासिल की थी।
जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में चुनावी साल में दलितों को साधना सियासी दलों के लिए महत्वपूर्ण है। 17 फीसदी वोट बैंक वाले दलित वोटर चुनाव में गेम चेंजर की भूमिका निभाते हैं। 80 लाख से अधिक दलित वोटर वाले 230 विधानसभा सीटों में से 35 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग (दलित) के लिए आरक्षित है, और 84 विधानसभा सीटों पर दलित वोटर जीत-हार तय करते हैं।