कोरोना महामारी के कारण जहां हर रोज हजारों लोगों की मौत हो रही है तो वहीं सरकार द्वारा मीडिया के माध्यम से ऐसा प्रचार-प्रसार किया जा रहा है जैसे वैक्सीन भारत सरकार के नेतृत्व में ही बन रही है। वहीं केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे में यह स्वीकार किया कि उसने वैक्सीन के विकास में एक पैसा भी नहीं लगाया।
सरकार में कोर्ट ने बताया कि यह वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका के अनुसंधान से बनी।
भारत मे दो कोरोना वैक्सीन को अनुमति मिली है। जिसमें पुणे का सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) कोविशील्ड बनाता है और हैदराबाद की भारत बायोटेक कोवैक्सीन का निर्माण करती है।
वैक्सीन का श्रेय लेने के लिए सरकार ने किया प्रचार
मोदी सरकार ने बिना कोई दावा किए कुछ ऐसी छवि बनाने की कोशिश की जैसे भारत सरकार ही सब कुछ कर रही है। यह धारणा 28 नवंबर 2020 से ही बनने लगी थी जिस दिन प्रधानमंत्री मोदी ने पुणे जाकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और हैदराबाद जाकर भारत बायोटेक लैब का दौरा व निरीक्षण किया था।
प्रमाणपत्र में भी लगाई तस्वीर
टीका लगने के बाद मिलने वाले प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री मोदी का चित्र रहने से यह धारणा और मजबूत हो गई कि वैक्सीनें केंद्र सरकार के नेतृत्व में निर्मित की जा रही हैं। किसी ने इस भ्रांति का खंडन भी नहीं किया और सरकार में बैठे मंत्री, सांसद और भाजपा नेता भी इस धारणा को मजबूत करने वाले बयान देते चले गए।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही आलोचना
मोदी सरकार की वैक्सीन पॉलिसी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की जा रही है। ब्रिटिश अखबार ‘गार्जियन’ ने लिखा कि जब अमेरिका और पश्चिम यूरोप के देश कोरोना से बचाव की वैक्सीन विकसित करने के लिए अरबों डॉलर लगा रहे थे, तब भारत ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को कोई मदद नहीं दी। ‘गार्जियन’ की रिपोर्ट सही होने की पुष्टि 11 मई को केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे से हो गई। सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कोर्ट को बताया कि उसने पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और हैदराबाद के भारत बायोटेक को वैक्सीन रिसर्च के लिए कोई रकम नहीं दी। सीरम इंस्टीट्यूट को क्लीनिकल ट्रायल के लिए भी कोई रकम नहीं दी गई।
6 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन कर दी निर्यात
मोदी सरकार की आलोचना इस बात पर भी हो रही है कि देश में जहां कोरोना के केस बढ़ रहे थे तो वहीं सरकार ने 6 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन दुनिया के दर्जनों देशों को निर्यात कर दिए और कुछ को मुफ्त में भी दिए। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पहली लहर खत्म होने के बाद सरकार निश्चिंत हो गई थी कि अब देश में टीके की जरूरत नहीं पड़ेगी?
इस समय भी कई देशों के पास करोड़ों टीकों का भंडार भरा हुआ है लेकिन वे उन्हें भारत को देने में आनाकानी कर रहे हैं। जो टीका 100-150 रुपए का बनता है, उसे रूस जैसा मित्र देश भारत को 1000 रुपए में बेच रहा है। भारत में 18 करोड़ लोगों को टीका लग चुका है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है लेकिन 135 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश को अभी बहुत अधिक वैक्सीन की जरूरत है। यह कहा जा रहा है कि इतने लोगों का टीकाकरण होने में कम से कम 2 वर्ष लग जाएंगे। इसलिए भी वैक्सीन की दूसरी डोज को लेने की अवधि बढ़ाई गई। टीका बनाने के लिए कई कंपनियों को लाइसेंस देने का सुझाव दिया जा रहा है लेकिन क्या ऐसी कंपनियों को सरकार अथवा पीएम केयर्स फंड से वित्तीय मदद मिलेगी?