मध्यप्रदेश में कांग्रेस से ज्यादा अपने सम्मान की चिंता कर रहे हैं दिग्गज कांग्रेसी

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नेताओं के बीच की लड़ाई पार्टी के मुद्दे काफी दिलचस्प हैं। स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में अहम की यह लड़ाई गंभीर गुटबाजी में बदलती जा रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की लोकप्रियता को भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। सिंधिया से कांग्रेस के नेताओं की अपेक्षा वैसी ही दिखाई दे रही है,जैसी वे अपने समर्थकों से करते हैं।

कांग्रेस की इस गुटबाजी का लाभ उठाते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने अपने समर्थकों को हर नेता के साथ फीट कर दिया है।

स्क्रीनिंग कमेटी में सिंधिया बनाम ऑल की लड़ाई

मध्यप्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी की एतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। इस एतिहासिक पृष्ठभूमि में कमलनाथ हमेशा ही माधवराव सिंधिया के खिलाफ ही खड़े हुए नजर आए। माधवराव सिंधिया का नाम जब भी मुख्यमंत्री पद के लिए उभर कर सामने आया तब-तब अर्जुन सिंह-कमलनाथ ने इसका खुला विरोध किया। चुरहट लॉटरी कांड में आए फैसले के बाद जब कांगे्रस हाईकमान ने अर्जुन सिंह को हटाने का फैसला लिया तब विधायकों के समर्थन के आधार पर माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री पद पर आने से रोका गया। अर्जुन सिंह समर्थक ठाकुर हरवंश सिंह के चार बंगले स्थिति निवास पर तीन दिन तक कांगे्रसी विधायक नजरबंद रहे। बाद में राजीव गांधी को समझौते का रास्ता निकालते हुए मोतीलाल वोरा को दुबारा राज्य का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। वोरा,माधवराव सिंधिया के करीबी थे। लगभग चार दशक पुरानी यह गुटबाजी पीढ़ी बदलने के बाद भी खत्म होती नजर नहीं आ रही हैं। प्रदेश कांगे्रस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ आज भी इस गुटबाजी के केन्द्र में हैं।

केन्द्र से कांग्रेस की सरकार जाने के बाद कमलनाथ किंगमेकर की भूमिका छोड़कर किंग बनने के लिए तैयार दिखाई दे रहे हैं। पिछले चार दशक में कमलनाथ कभी भी छिंदवाड़ा जिले से बाहर नहीं निकले हैं। विधानसभा के इस चुनाव में भी वे छिंदवाड़ा के कथित विकास को ही अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। छिंदवाड़ा के कमलनाथ मॉडल को वोटरों ने वोटरों ने खास तव्वजों नहीं दी है। 72 साल के कमलनाथ ने पिछले छह माह में दो अंकों की संख्या में बताया जा सके इतनी रैलियां भी नहीं कर पाए हैं। क

मलनाथ ने अपनी पूरी ताकत सिंधिया को रोकने में लगा रखी है। पार्टी की चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष होने के बाद भी प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने राज्य भर में सिंधिया की सभा भी नहीं होने दी। जबकि राज्य में कमलनाथ के मुकाबले में सिंधिया का चेहरा ज्यादा लोकप्रिय है। कई चुनावी सर्वेक्षणों में भी मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कमलनाथ के पक्ष में उत्साहजनक राय सामने नहीं आई है। अब कमलनाथ की कोशिश है कि अपने समर्थकों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाकर सिंधिया को मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर दिया जाए। राज्य में परंपरागत तौर सिंधिया विरोधी नेता एक साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। इन नेताओं में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ,अजय सिंह और कांतिलाल भूरिया प्रमुख हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी दोनों गुट में समान रूप से सक्रिय नजर आ रहे हैं। बताया जाता है कि पचौरी ने अपने कुछ समर्थकों के नाम सिंधिया गुट से और कुछ समर्थकों के नाम कमलनाथ गुट की ओर से आगे बढ़ाया हैं। विवेक तन्खा भी दोनों गुटों को साध कर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं।

भाजपा से समझौते की उड़ रहीं अपवाहें

चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी होने से पहले एक बार फिर भूल छाप कांगे्रसियों के सक्रिय दिखाई देने से प्रतिबद्ध कांगे्रसी हैरान हैं। प्रतिबद्ध कांगे्रसी यह महसूस कर रहे हैं कि पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने इस चुनाव से पहले भाजपा से अंदरूनी समझौता कर लिया है। अधिकांश कांगे्रसी यह मानते हैं कि कमलनाथ की तुलना में ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा राज्य में ज्यादा लोकप्रिय है। राज्य के वोटर भी यह मानते हैं भाजपा की पंद्रह साल की सरकार को चुनौती सिर्फ सिंधिया दे सकते हैं। प्रदेश कांगे्रस के अधिकांश नेता भी यह महसूस करते हैं कि सिंधिया का लाभ पाटर्भ् को मिल सकता है, लेकिन वे पार्टी से ज्यादा अपने अहम को ज्यादा महत्व दे रहे हैं। सिंधिया से उनके विरोधियों को शिकायत इस बात की रहती है कि वे उम्र में काफी बड़े अजय सिंह, कांतिलाल भूरिया और सुरेश पचौरी जैसे नेताओं को भी पहले नाम से बुलाते हैं। पार्टी नेताओं की यह अपेक्षा है कि सिंधिया उनकी वरिष्ठता को स्वीकार करें। सिंधिया वर्ष 2002 में सक्रिय राजनीति में आए हैं। जबकि उनके मुकाबले में खड़े विरोधी नेता अस्सी के दशक से राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता यह भी चाहते हैं कि सिंधिया अपने संसदीय क्षेत्र तक सीमित रहे हैं।

दिग्विजय सिंह-कमलनाथ की जोड़ी ग्वालियर संभाग में अपने उन समर्थकों को टिकट दिलाना चाहते हैं पंद्रह साल में जिनकी मैदानी पकड़ कमजोर हो गई है। मध्यप्रदेश की स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमेन मधूसूदन मिस्त्री हैं। मिस्त्री भी सिंधिया द्वारा दिए गए नामों पर क्ैंची चला रहे हैं। सिंधिया को राहुल गांधी का करीबी मानी जाता है। हर चुनावी सभा में वे कमलनाथ से ज्यादा महत्व सिंधिया को दे रहे हैं। सिंधिया सिर्फ 47 साल के हैं।

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