Sunday, September 24, 2023

आइए जाने रमज़ान के आध्यात्मिक, शारारिक और मानसिक फायदे

NewBuzzIndia:

किसी भी धर्म का मुख्य उद्देश्य मनुष्य की भलाई और बेहतरी होती है। जीवन को एक अनुशासन और लयबद्ध तरीके से जीना, जिससे व्यक्ति को आत्मिक एवं शारारिक शांति हासिल करना ही प्राथमिकता होती है। यही कारण है कि सभी पंथों में इस सुकून, चैन और शांति को प्राप्त करने के राह को अलग अलग तरह से समझाया गया है।
आइए समझते हैं कि इस्लाम में रमज़ान का महीना किस तरह से आत्मा, मन और शारीर के लिए महत्वपूर्ण है।

रमजान इस्लाम का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने में मुसलमानों पर रोजा रखना फर्ज है जिसका अर्थ है कि सुबह से शाम तक हर खाने पीने के साथ हर अवैध काम से परहेज करना और शारीरिक और मांसिक रूप से नियंत्रण रखना है जो समाज और मानवता के लिए एक उपहार से कम नहीं है।

इस पवित्र महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।

रोजा का अर्थ

रोजा का सही अर्थ सुबह से संध्या तक केवल खाने पीने को छोड़ देना नहीं है बलकि रोजा जिसे अरबी में सौम कहा जाता है का अर्थ रुकना है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करना है। अर्थात पेट का रोजा जिसका अर्थ है कि रोजे के समय कुछ न खाये पिये और उसके पश्चात रिश्वत जैसे अवैध पैसे से खरीदा गया भोजन न करे, आंखों का रोज अर्थात किसी बहू बेटी को गंदी और हवस भरी नजर से न देखे, जुबान का रोजा अर्थात झूठ न बोले, किसी की बुराई न करे, किसी पर गलत आरोप न लगाए, किसी को बुरा भला न कहे, किसी को अपशब्द न कहे आदि, कान का रोजा अर्थात किसी की बुराई न सुने, हाथ पैर का रोजा अर्थात किसी का अधिकार न छीने और न ही पर अत्याचार करे। बलकि दूसरों का हाथ थामे और पीड़ितों की सहायता के लिए आगे बढ़े, तथा दिल और दिमाग में ईष्वर की श्रद्धा हो एंव अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाए ताकि गलत रास्तों पर न जा सके।

इसी कारण इस महीने में इबादत का 70 गुना सवाब रखा गया है। इस प्रकार रोजा मानव जीवन की समृद्धि का एक मुख्य स्रोत बन जाएगा। इसी भावना को प्रदर्शित करने के लिए इस महीने में अफतार देने पर बल दिया गया है ताकि इस समय किसी के मन में अमीर गरीब, शक्तिशाली निर्बल, ऊंच नीच की भावना मिट जाए और सभी एक ही स्थान पर बैठ कर ईष्वर की इस नीति को समझ कर उच्च समाज की स्थापना कर सकें।

इस एक महीने में यदि सही रूप से रोजा रखा तो बाकी महीनों में भी वह इसी प्रकार का व्यवहार करेगा क्योंकि उसे इसकी आदत हो चुकी होगी क्योकि रोजा मनुष्य के संयम की परीक्षा है।

रोजा का आध्यात्मिक लाभ

रोजा न केवल मानव जीवन के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभदायक है बलकि इस प्रकार का रोजा समाज की शांति और समृद्धि का कारण है।

रोजा द्वारा भावनाओं और हवस पर काबू पाया जा सकता है।

रोजा, अन्य लोगों के अधिकारों से हनन से बचाता है और दुसरों की सहायता के लिए प्रोत्साहित करता है।

रोजा द्वारा मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जा सकता है जिससे समाज शांति की ओर अग्रसर होगा।

रोजा का शारीरिक लाभ

पिछले युगों में रोजा को खास महत्व प्राप्त था और पाइथागोरस, सुकरात और इब्ने सीना जैसे हकीम रोजा द्वारा बहुत से रोगों का इलाज किया करते थे।

रूस के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉक्टर एलेक्सी सोफ्रीन का कहना है कि साल भर निरंतर खाना उपयोग करने से मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसे पदार्थ और ऊर्जा उत्पन्न हो जाते है जो बाद में हानिकारक एंव विषैला हो जाता है लेकिन रोजा रखने से शरीर उस आंत्रिक ऊर्जा का सेवन करता है जिसके कारण शरीर स्वस्थ हो जाता है और रोजा एक विशेष बायोलोजिक इलाज है।

रोजा डिप्रेशन का बेहतरीन इलाज है क्योंकि यह मनुष्य में आशा और आत्मविश्वास जगाता है।

रोजा पाचन तंत्र को आराम देता है जिससे अच्छा फिज़ियोलोजिक प्रभाव डालता है।

इसके अतिरिक्त भी विश्व के विख्यात विद्वानों ने रोजे पर शोध करके इसके सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक लाभों का व्याख्यान किया है।

रमजान मानता के लिए उपहार

यूंतो इस्लाम का अर्थ ही शांति है लेकिन इस्लामी कैलेंडर का रमजान महीना न केवल मुसलमानों के लिए बलकि कुल मानवता के लिए शांति का संदेश और समाज की समृद्धि को लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और रोजा मानव के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अत्यंत लाभदायक है और कुल मानव जाति के लिए एक उपहार से कम नहीं है क्योंकि इस महीने में लोगों को भावनाओं और हवस पर नियंत्रण करना और दूसरों की सहायता करना, दूसरों के अधिकारों का करने से परहेज करना, शारीरिक, मांसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने के गुर सिखाकर परीक्षा ली जाती है।

इसी कारण यदि धर्मों और सभ्यताओं का इतिहास खंगाला जाए तो बहुत से धर्मों में अलग अलग तरीके से रोजा का कांसेप्ट आपको अवश्य नजर आएगा जैसे युनान और रोम की सभ्यता एंव हिंदू, ईसाई और यहूदी धर्मों में विभिन्न प्रकार से रोजा और उपवास का विश्वास पाया जाता रहा है।मजान इस्लाम का सबसे पवित्र और आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस महीने में मुसलमानों पर रोजा रखना फर्ज है जिसका अर्थ है कि सुबह से शाम तक हर खाने पीने के साथ हर अवैध काम से परहेज करना और शारीरिक और मांसिक रूप से नियंत्रण रखना है जो समाज और मानवता के लिए एक उपहार से कम नहीं है।

इस पवित्र महीने में रोजे रखना सभी बालिग और स्वस्थ्य लोगों के लिए वाजिब (अनिवार्य) बताया गया है। बीमार, बूढ़े, सफर कर रहे लोगों, गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माओं को रोजे रखने या ना रखने की आजादी दी गई है। मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के लिए भी रोजा रखने की मनाही है। मासिक धर्म के खत्म होने के बाद रोजा रखना जरूरी है।

रोजा का अर्थ

रोजा का सही अर्थ सुबह से संध्या तक केवल खाने पीने को छोड़ देना नहीं है बलकि रोजा जिसे अरबी में सौम कहा जाता है का अर्थ रुकना है और अपनी इंद्रियों को नियंत्रण करना है। अर्थात पेट का रोजा जिसका अर्थ है कि रोजे के समय कुछ न खाये पिये और उसके पश्चात रिश्वत जैसे अवैध पैसे से खरीदा गया भोजन न करे, आंखों का रोज अर्थात किसी बहू बेटी को गंदी और हवस भरी नजर से न देखे, जुबान का रोजा अर्थात झूठ न बोले, किसी की बुराई न करे, किसी पर गलत आरोप न लगाए, किसी को बुरा भला न कहे, किसी को अपशब्द न कहे आदि, कान का रोजा अर्थात किसी की बुराई न सुने, हाथ पैर का रोजा अर्थात किसी का अधिकार न छीने और न ही पर अत्याचार करे। बलकि दूसरों का हाथ थामे और पीड़ितों की सहायता के लिए आगे बढ़े, तथा दिल और दिमाग में ईष्वर की श्रद्धा हो एंव अपनी भावनाओं पर अंकुश लगाए ताकि गलत रास्तों पर न जा सके।

इसी कारण इस महीने में इबादत का 70 गुना सवाब रखा गया है। इस प्रकार रोजा मानव जीवन की समृद्धि का एक मुख्य स्रोत बन जाएगा। इसी भावना को प्रदर्शित करने के लिए इस महीने में अफतार देने पर बल दिया गया है ताकि इस समय किसी के मन में अमीर गरीब, शक्तिशाली निर्बल, ऊंच नीच की भावना मिट जाए और सभी एक ही स्थान पर बैठ कर ईष्वर की इस नीति को समझ कर उच्च समाज की स्थापना कर सकें।

इस एक महीने में यदि सही रूप से रोजा रखा तो बाकी महीनों में भी वह इसी प्रकार का व्यवहार करेगा क्योंकि उसे इसकी आदत हो चुकी होगी क्योकि रोजा मनुष्य के संयम की परीक्षा है।

रोजा का आध्यात्मिक लाभ

रोजा न केवल मानव जीवन के लिए आध्यात्मिक रूप से लाभदायक है बलकि इस प्रकार का रोजा समाज की शांति और समृद्धि का कारण है।

रोजा द्वारा भावनाओं और हवस पर काबू पाया जा सकता है।

रोजा, अन्य लोगों के अधिकारों से हनन से बचाता है और दुसरों की सहायता के लिए प्रोत्साहित करता है।

रोजा द्वारा मन और मस्तिष्क पर नियंत्रण किया जा सकता है जिससे समाज शांति की ओर अग्रसर होगा।

रोजा का शारीरिक लाभ

पिछले युगों में रोजा को खास महत्व प्राप्त था और पाइथागोरस, सुकरात और इब्ने सीना जैसे हकीम रोजा द्वारा बहुत से रोगों का इलाज किया करते थे।

रूस के प्रसिद्ध विशेषज्ञ डॉक्टर एलेक्सी सोफ्रीन का कहना है कि साल भर निरंतर खाना उपयोग करने से मनुष्य के शरीर में कुछ ऐसे पदार्थ और ऊर्जा उत्पन्न हो जाते है जो बाद में हानिकारक एंव विषैला हो जाता है लेकिन रोजा रखने से शरीर उस आंत्रिक ऊर्जा का सेवन करता है जिसके कारण शरीर स्वस्थ हो जाता है और रोजा एक विशेष बायोलोजिक इलाज है।

रोजा डिप्रेशन का बेहतरीन इलाज है क्योंकि यह मनुष्य में आशा और आत्मविश्वास जगाता है।

रोजा पाचन तंत्र को आराम देता है जिससे अच्छा फिज़ियोलोजिक प्रभाव डालता है।

इसके अतिरिक्त भी विश्व के विख्यात विद्वानों ने रोजे पर शोध करके इसके सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक लाभों का व्याख्यान किया है।

रमजान मानता के लिए उपहार

यूंतो इस्लाम का अर्थ ही शांति है लेकिन इस्लामी कैलेंडर का रमजान महीना न केवल मुसलमानों के लिए बलकि कुल मानवता के लिए शांति का संदेश और समाज की समृद्धि को लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और रोजा मानव के लिए सामाजिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से अत्यंत लाभदायक है और कुल मानव जाति के लिए एक उपहार से कम नहीं है क्योंकि इस महीने में लोगों को भावनाओं और हवस पर नियंत्रण करना और दूसरों की सहायता करना, दूसरों के अधिकारों का करने से परहेज करना, शारीरिक, मांसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रहने के गुर सिखाकर परीक्षा ली जाती है।

इसी कारण यदि धर्मों और सभ्यताओं का इतिहास खंगाला जाए तो बहुत से धर्मों में अलग अलग तरीके से रोजा का कांसेप्ट आपको अवश्य नजर आएगा जैसे युनान और रोम की सभ्यता एंव हिंदू, ईसाई और यहूदी धर्मों में विभिन्न प्रकार से रोजा और उपवास का विश्वास पाया जाता रहा है।

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